चल चलें रे मन मेरे…………
सोचत मन अब मैं कित जाऊँ।
चल चलें रे मन मेरे…………
कभी भ्रमित मन, कभी घूमत मन,
कभी मधहोश मन, कभी रुठत मन।
चल चलें रे मन मेरे…………
कभी संकुचित मन, कभी उलझित मन,
कभी खेलत मन, कभी बहकत मन ।
चल चलें रे मन मेरे…………
कभी सहमत मन, कभी कुंठित मन,
कभी क्रोधित मन, कभी संचित मन।
चल चलें रे मन मेरे…………
कभी आस्तिक मन, कभी नास्तिक मन,
कभी तडपत मन, कभी पुलकित मन।
चल चलें रे मन मेरे…………
हर पल बदलत, मन मैं अब कित जाऊँ
चल चलें रे मन मेरे…………
- प्रतिबिम्ब बडथ्वाल
waah bahut sunder,mann ke har kone ka bhav prastut hua hai.
जवाब देंहटाएंएक बेहतरीन रचना!! वाह!
जवाब देंहटाएंमन की गति न्यारी है भाई। उसके गति-भावों को शब्दों में खूब बांधा है.
जवाब देंहटाएंपहली बार इधर आना हुआ है। अब आते रहेंगे। पहली फुर्सत में इसे अपने ब्लारोल में भी ले आएंगे।
उठत गिरत मै पग बढ़ाऊँ,
जवाब देंहटाएंसोचत मन अब मैं कित जाऊँ।
अत्यंत सुन्दर |