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रविवार, 30 अगस्त 2009

चल चलें रे मन मेरे…………

चल चलें रे मन मेरे…………

उठत गिरत मै पग बढ़ाऊँ,

सोचत मन अब मैं कित जाऊँ।

चल चलें रे मन मेरे…………

कभी भ्रमित मन, कभी घूमत मन,

कभी मधहोश मन, कभी रुठत मन।

चल चलें रे मन मेरे…………

कभी संकुचित मन, कभी उलझित मन,

कभी खेलत मन, कभी बहकत मन ।

चल चलें रे मन मेरे…………

कभी सहमत मन, कभी कुंठित मन,

कभी क्रोधित मन, कभी संचित मन।

चल चलें रे मन मेरे…………

कभी आस्तिक मन, कभी नास्तिक मन,

कभी तडपत मन, कभी पुलकित मन।

चल चलें रे मन मेरे…………

मन की बतिया, मन में ही समाये

हर पल बदलत, मन मैं अब कित जाऊँ

चल चलें रे मन मेरे…………

- प्रतिबिम्ब बडथ्वाल

4 टिप्‍पणियां:

  1. मन की गति न्यारी है भाई। उसके गति-भावों को शब्दों में खूब बांधा है.
    पहली बार इधर आना हुआ है। अब आते रहेंगे। पहली फुर्सत में इसे अपने ब्लारोल में भी ले आएंगे।

    जवाब देंहटाएं
  2. उठत गिरत मै पग बढ़ाऊँ,

    सोचत मन अब मैं कित जाऊँ।

    अत्यंत सुन्दर |

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी/प्रतिक्रिया एवम प्रोत्साहन का शुक्रिया

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