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सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

तो क्या बात होती


- तो क्या बात होती-

ख्वाब हकीकत बन जाते तो क्या बात होती
हम - तुम एक हो जाते तो क्या बात होती

तेरा दर्द मैं सह पाता तो क्या बात होती
तेरे आंसू मेरी आंख से आते क्या बात होती

तेरा गम मैं समेट पाता तो क्या बात होती
तेरी परछाई मैं बन पाता तो क्या बात होती

मेरी खुशनसीबी तुम्हें मिल जाती तो क्या बात होती
तुम्हारा प्यार मुझे मिल जाता तो क्या बात होती

मेरा सुख-चैन तुम को मिल जाता तो क्या बात होती
मेरी मुस्कराहट तुम को मिल जाती तो क्या बात होती

तेरे दामन में ख़ुशियाँ मैं भर पाता तो क्या बात होती
दुनिया की बुरी नज़र से बचा पाता तो क्या बात होती


- प्रतिबिम्ब बडथ्वाल

(पुरानी रचना दूसरे ब्लाग से)

5 टिप्‍पणियां:

  1. बड़थ्वाल जी को अच्‍छी रचना के लिये बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रतिबिब्म जी .
    आपको और आपकी लेखनी को मेरा सलाम !!!

    गजब कर दिया आपने .
    वाह जी वाह

    जवाब देंहटाएं
  3. हर भाव मन का होता पूरा तो क्या बात होती ...........प्रति जी बहुत सुंदर भाव और अहसास ........सुंदर शब्दों का ताना बाना ...........शुभं

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी/प्रतिक्रिया एवम प्रोत्साहन का शुक्रिया

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