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शुक्रवार, 19 जून 2009

आईना


जिंदगी का आईना
हर वक्त बदलता है
आईने के सामने
बनाते बिगाड़ते चेहरे
कल के चेहरे में
आज का रंग भर देते हैं
कल की पहचान बना देते है

आईना झूठ नहीं कहता
चेहरे का सच हम जानते है
फिर भी कल को छोड़
कल को देखते है
आज की तस्वीर बनाते है
कल को बदलने की चाह में
आइने में आज संवारते है

आईने की सच्चाई
मन में फ़िर भी रहती है
झूठ को कचोटती है
लेकिन सच को छुपाती है
फिर आँखे मूँद सपने सजते है
प्रशन भी आज उठते है
हकीकत किस से छिपा रहे हैं?
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
( पुरानी रचना आपके लिए जो दुसरे ब्लॉग में लिखी थी )

मंगलवार, 16 जून 2009

देखता क्या मन


देखता क्या मन
सोचता क्या मन
कुछ खेलता मन
कुछ झेलता मन

हँसता हुआ मन
रोता हुआ मन
कुछ बोलता मन
प्यार करता मन

सवाल मन में
जबाब मन में
तनाव मन में
लगाव मन में

असहाय सा मन
अकेला सा मन
बुदबुदाता मन
गुनगुनाता मन

मन मेरा ना माने
क्या कहे ना जाने
कोई सीमा नहीं मन की
कहानी ये मेरे मन की


-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

( यह रचना भी मेरे दुसरे ब्लॉग से ली गई है सोचा आप तक पहुँचा दूँ )
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