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शुक्रवार, 26 जून 2009

इसे क्या कहेंगे आप?


शुक्रवार छुटी का दिन, सोचा अपनी कार को ज़रा साफ किया जाए। छोटी सी बाल्टी पानी की और दो तौलिये लेकर पहुँच गया। अभी मैंने कार को गीले तौलिये से साफ करना ही शुरू किया तो एक महाशय मेरे पास आये जो अपनी कार के साथ किसीका इन्तेज़ार कर रहे थे. उन्होंने कहा आपके पास गीला तौलिया है जो आप प्रयोग कर रहे है. क्या आपके पास सुखा तौलिया भी है. मैंने कहा जी हाँ, तो वे थोडी देर के लिए तौलिया मुझसे ले गए.


मै अभी अपनी काको गीला कर ही रहा था की वे वापस आये और कहने लगे इसके बाद आप इसे सूखे तौलिये से साफ करेंगे। मैंने कहा हाँ और ये सुनते ही वे महाशय शुरू हो गए सूखे कपडे से मेरी कर को साफ़ करने। मैंने कितना कहा की रहने दीजिये पर उन्होंने कहा की "मै अपने दोस्त का इन्तेज़ार कर रहा हूँ और आपको मिलकर देखकर आपकी साथ हाथ बांटने का मन कर गया". इतने में उनके दोस्त भी आ गए लेकिन उन महाशय ने पूरी कर साफ़ करके ही दम लिया.


इस दौरान उनसे गुफ्तगू भी हुई और मालूम पड़ा की वे (श्री हरीश जी) सम्मानित बैक में बिजेनेस एड्वाइसर है। और उनके दोस्त (श्रीराम)भी किसी अन्य बैंक में। दोनों चिन्नई से ताल्लुक रखते है. वे लोग मेरी बगल वाली १७ मंजिला ईमारत में रहते है. मै पिछले ८ साल से यहाँ रह रहा हूँ पर पहले कभी मुलकात नहीं हुई।


इस घटना को यहाँ लिखने का मतलब यह है की आज भी इंसानियत किसी न किसी रूप में जिन्दा है। कही न कही वो भाव किसी कोने में छिपा है हम सभी लोगो के. उनके मांगे पर तौलिया देना (कोई बड़ा काम नहीं था) पर शायद उनको अच्छा लगा की न जानते हुए भी मैंने ॥ वो केवल धन्यवाद कह कर भी जा सकते थे लेकिन ये उनका दिल था जिसमे अभी कद्र बाकी है ...थोड़े को ज्यादा कर के लौटना या किसी के किये को हमेशा याद रखना ( कुछ यही सब हमारे बुजर्गो ने भी सिखाया पर कही न कही......)


जीवन में कुछ छोटी छोटी घटनाएं एक सन्देश दे जाती है और एक प्रेरणा भी.

मंगलवार, 23 जून 2009

सिसकियां लेती है मन की वेदना


सिसकियां लेती है मन की वेदना
झुंझलाती रहती है अपनी चेतना

हर मोड़ पर दिखते हैं अब बिखरे कांटे
ना जाने क्यों दिल से दिल को हम बांटे

प्यार का करते रहते है हम सब ढोंग
लेकिन हैं दुश्मन एक दूजे के हम लोग

खून मानवता का अब और सस्ता हुआ
जीना बेसुध दुनिया में और महंगा हुआ

अंगड़ाई जोश की लेती तो है जवानी
स्वार्थ कि खातिर बन जाती नई कहानी

फ़ैशन बन कर अब विलुप्त हो रही खादी
मूक रहकर खुली आंख से देख रहे बर्बादी

कुछ हक़ीकत है, कुछ है फंसाना
फ़िर भी जीने का ढूंढ़े हम बहाना
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
( पुरानी कुछ रचनाओ में से एक आपके लिए )
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