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शनिवार, 8 अगस्त 2009

आ गई अब बरसात की बारी


सन १९७९ में जब पहली बार बारिश देख कर कुछ लिखने का मन हुआ तो शब्द कुछ इस तरह उभर कर आए थे। आज भी मेरी डायरी के पन्ने पर पहली कविता यही है।



प्रतीक्षा थी तेरी वर्षा रानी,
बहुत की तूने आनाकानी।

मोरो ने नाच कर दिखाया,
हमें वर्षा का संदेश सुनाया।

चारो ओर छा गई समां निराली,
घटा है छाई काली – काली।

चिडियों ने पंख फडफ़डाये,
बादल है अब गडगडाये।

जब आई बरखा रानी,
चारो ओर फैल गया पानी।

भर गये सब नदी तालाब,
चारो ओर खिले कमल गुलाब।

कोयल ने कू कू कर,
मन को सांतवना दी गाकर।

हरी भरी हुई है डालिया
पक्षी करने लगे उनसे अठखेलिया।

हरियाली की यों आ गई बहार है,
खुश हुये सब नर नार है।

- प्रतिबिम्ब बडथ्वाल


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