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शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

मुस्कराहट बांटते चलो..




मुस्कराहट - पुलकित कर देती है मन को. क्या महसूस किया कभी आपने. अगर नही तो कोशिश करिये, कही न कही आपके अंतर्मन को खुश कर देगा. मैने इसे बहुत बार महसूस किया है. मुस्कराहट केवल अपने मन मे ही नही दूसरे के चेहरे पर भी आप पढ सकते है.


कुछ दिन पहले हमारी बिल्डिग मे बाहर सफ़ेदी हो रही थी, काफ़ी लम्बे समय के बाद हमारी तरफ़ का नम्बर आ ही गया. बालकोनी मे खडे हो कर उनको देख रहा था कभी उपर कभी नीचे १५ मंजिला इमारत में सफ़ेदी करना कितना सरल या कठिन होगा उन लोगो के लिये. यही विचार कर रहा था. मै १० वी मंजिल में रहता हूं. तभी मेरी नज़र अपनी बालकोनी मे लगे बल्ब पर गई जिसे मैने कभी जलाया नही था उसे आन किया तो जला नही..बल्ब बदल्ने की सोची लेकिन बहुत उंचाई पर है जिस्के लिये काफ़ी लम्बी सीढी की जरुरत नज़र आई. तभी सफ़ेदी करने वाले नीचे आते दिखे मैने उनसे निवेदन किया क्या वे कुछ मदद कर सक्ते है वे राजी हुये और मैने उन्हे बल्ब दिया और उन्होने मेरा काम कर दिया. मेरी पत्नी ने झट से मुझे कुछ पैसे दिये उनको देने के लिये जो उन्होने सहजता से रख लिये और उनके चेहरे पर एक मुस्कराहट खिल आई. और हम दोनो भी खुश हो गये उनके चेहरे में जो भाव दिखे. मैने उनसे पूछा कुछ खाने पीने के लिये लेकिन उन्होने मना किया ( वे बंगलादेशी थे, और रोज़े रखे हुये थे). इतनी गर्मी मे खडे होकर काम करना, फ़िर पापी पेट के लिये जान जौखिम मे डालना. इंसान की जरुरत कहा से कहा ले जाती है या किस किस तरह के काम के लिये मज़बूर होना पडता है. फ़िर ख्याल भी आया कि उन लोगो का क्या जो इतनी उंची उंची इमारतो मे कार्य करते है...

खैर अगले दिन में फ़िर बाल्कनी मे खडा था उन्ही लोगो को देख रहा था, इस बार वे देखते ही मुस्कराने लगे. मैने उसकी तस्वीर लेनी चाही, फ़िर उनकी मुस्कराहट देखने वाली थी. एक तस्वीर उसने अपने पूरे कार्य के लिबास मे खिच्वाई १०वी मंजिल से लटके हुये, फ़िर उस्ने अपनी टोपी और रुमाल हटा कर( जो उस्ने रंग से बचने व उसकी गंध से बचने के लिये पहना था) तस्वीर खिंचवाई.शायद उसे ये मौका पह्ली बार मिला हो लटकते हुये.. पर मुझे और मेरी पत्नी को जो खुशी उनके चेहेरे मे नज़र आई उसे बयान तो नही कर सकता बस महसूस कर सकता हूं.( आप भी इन तस्वीरो को देखे)


एक मुस्कराहट सच में कितनी खुबसूरत बन जाती है. उन लोगो को ना जानते हुये भी वे उन पलो मे अपने से लगने लगे. कल मै जब अपनी कार पार्किग करके बाहर निक्ला तो दूर वही जनाब खडे थे. जैसे मैने नज़र उधर दौडाई तो वो मुस्करा रहा था मुझे देखकर. अच्छा लगा. शायद कुछ दिनो बाद ( जब कार्य खतम हो जाये उनका) हम ना भी मिले लेकिन यदि कही नज़र आये तो यकीन है वो मुस्कराहट बरकरार रहेगी.

मुस्कराहट बांटते चलो....

- प्रतिबिम्ब बडथ्वाल

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