प्रेम तपस्या में
लीन होकर जाना
कुछ हद तक
प्यार की भाषा को
और उसकी परिभाषा को
प्रेम एक
सम्बन्ध है
मेल है
दिल के तारो का
परस्पर स्नेह का
विचारो का
भावनाओ का
एक दूजे का
सहारा है प्यार
समर्पण और आदर का
सामंजय है प्यार
शायद इस दुनिया मे कई
प्रेम पुजारी है
फिर भी
प्रेमबन्धन मे पूर्ण नही
प्यार मोह्ब्बत के इस
मनचले खेल ने
"प्रतिबिम्ब " तुम्हें
बहुत कुछ सिखलाया है
और सिखा रहा है
अरे!!! ये किसकी आवाज है
जो चुपके से मेरे कानो मे
शहद घोल रही है और
अपने करीब बुला रही है
अच्छा मैं चला और कुछ
सीखने की चाह मे - प्यार की राह में।
- प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल
(एक पुरानी रचना पुराने ब्लाग से)
good
जवाब देंहटाएंbahut khub
◊▬►► प्रतिबिम्ब जी प्रेम तो तपस्या का ही एक रूप है ! इस तप में लीन हो हर तरह के भाव प्राप्त होते हैं ! जो एक ही जगह एक साथ कहीं और दुर्लभ हैं ! इसी लिए तो कामदेव नामक देव भी हैं इस जहान में !
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