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शुक्रवार, 4 जून 2010

फिर एक अहसास हुआ


आज कुछ गुमसुम सा था
मन मे कुछ उतार चढाव सा था
मन के भीतर कुछ ज्वार भाटा सा था
अहसास कुछ चावल आटा सा था
कुछ चुन सकता था कुछ सब मिला सा था
वक्त भी कुछ हमसे जला भुना था

हर रिश्ते पर कुछ प्रश्न खडे थे
अपने ना जाने क्यो सडे पडे थे
हम भी बस अनजान खडे थे
अपनो से हम भी कुछ अडे खडे थे
दोस्त वे भी दूर खडे थे 
जिनके लिये हम भी कभी लडे थे

जिसने अपना जाना वो मुहं फुलाये खडा था
हाथ जिसका थामा वो भी अकडा खडा था
दीन दुनिया की रस्मो मे जकडा खडा था
हर दुशमन भी सामने अकडा खडा था
हर राह में भावो का यू रोड़ा खडा था
मुसीबत का सामने जैसे जोडा खडा था

इतने मे आई मन्द सी हवा 
छट गया जो फैला था धुआं
जो सोचा न था वो  हुआ
ना जाने कैसे ये सब हुआ
मन मे फिर एक अहसास हुआ
हर बात मे उनका फिर दीदार हुआ

-प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल , अबु धाबी, यू ए ई

2 टिप्‍पणियां:

  1. ▬● प्रति भईया , अपनों के बीच बेगाना , गुमनाम ही तो है......

    (my business site ☞ Su-j Helth ☞ http://web-acu.com/ )

    जवाब देंहटाएं
  2. इतने मे आई मन्द सी हवा
    छट गया जो फैला था धुआं
    जो सोचा न था वो हुआ
    ना जाने कैसे ये सब हुआ
    मन मे फिर एक अहसास हुआ
    हर बात मे उनका फिर दीदार हुआ.........प्रति जी बहुत ही सुंदर अहसास .......और भाव ............शुभं

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी/प्रतिक्रिया एवम प्रोत्साहन का शुक्रिया

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