बढ गये दाम, जनता ने दिखाया आज फिर रोष
दो दिन गुर्रायेगे फिर ना रहेगा किसी को होश
एक दुसरे की परवाह किसने की है और किसको है
पेट भर जाये और नोट कमा लू ये ख्याल हमको है
सताप़क्ष को मालूम है कब और कैसे चलना है ये पैतरा
बेवकूफ है जनता भूल जायेगी जब होगा नया सवेरा
कर देगें कुछ मंहगाई कम, जब आयेगा चुनावी मौसम
इतने साल मे जो कमाया उसमे से कुछ लौटा देगे हम
भोली जनता का ढोंग रचाते, कभी बस दो बात कह जाते
सबकी हां में हां मिला कर, बस अपने ही बन के रह जाते
- प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल
यही होता आया है..सटीक
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