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गुरुवार, 5 अगस्त 2010

सोचा न था


सोचा न था

जिंदगी एक ख्वाब है
ख्वाब नासुर बन जायेगे
सोचा न था

दोस्ती एक अहसास है
अहसास भी यूँ बिखर जायेगे
सोचा न था

प्रेम एक विश्वास  है
विश्वास भी यूँ टूट जायेगा
सोचा न था

समाज एक आईना है
आईना भी सूरत बदल देगा
सोचा न था

देशभक्ति एक ज़ज्बा है
जज़्बात भी अब  बिकने लगगे
सोचा न था

सयुंक्त परिवार एक आदर्श है
आदर्श भी अब मुँह चिढाने लगेगे
सोचा न था

हिन्दुस्तान की अपनी संस्कृति है
संस्कृति का भी लोग मज़ाक उडायेगे
सोचा न था

आजादी में भी हाथ था शहीदो का
शहीदो को ही अब हम आंतकवादी कहेगे
सोचा न था

नेता जनता का प्रतिनिधि होता है
प्रतिनिधि ही अब जनता को लूटेगा
सोचा न था

एक दूजे के भावो मे थे हम और आप
आप अब किसी के हाथो की कठपुतली बन गये
सोचा न था

वादा था कि खोने न देगे अपना आज
आज आपने दूर होकर अपनी सोच  बदल ली
सोचा न था


-       प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल, अबु धाबी, यूएई
०५.०८.२०१० 

2 टिप्‍पणियां:

  1. सवाल तो बहुत सारे उठा दिए हैं आपने ...
    आपके ब्लॉग में इतना कुछ डाउन लोड किया हुआ है इसे खोलने में ही बहुत समय लग जा रहा है ।

    जवाब देंहटाएं
  2. जी और अब समय आ गया है कि आत्म चिंतन किया जाए ..आखिर इस सब का जिम्मेदार कौन ...

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी/प्रतिक्रिया एवम प्रोत्साहन का शुक्रिया

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