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सोमवार, 1 नवंबर 2010

मन

         
मन क्या कहूँ तेरी व्यथा है अति निराली
कभी छटे जाए अधेरा कभी छा जाये बदली

देखा तुझको रोते हुये, देखा तुझको हंसते हुये
एक मन है तू फिर भी कितने रुप छुपाये हुये

दुख झेलता तू सारे, खुशी भी तुझे ही मिलती
दर्द समेटता अपने में, सज़ा भी तुझे ही मिलती

क्रोध प्यार का अनुठा संगम तुझमे है बसता
हर पीडा और खुशी का तू ही तो एक रस्ता

प्यार मिल जाये किसी से तो मुस्कराता है तू
रिश्ता टूटे तो खुद ब खुद कितना रोता है तू

कभी बन जाता बच्चा खेलता तू फिर खुद से
कभी बडा बन सयानी बाते करता तू खुद से

कभी सवाल करता कभी जबाब देता तू सारे
कभी खुद सवाल बन खुद को कोसता तू प्यारे

कभी विचलित कभी विस्मित कभी पागल तू बन जाता
कभी मान जाये झट से कभी नखरे तू बहुत है दिखाता

कभी खो जाता खुद में कभी किस से तू मिलकर आता
जो कहा नही कभी  किसी से वो सब तू बोलकर आता

खुद को समझा पाये कभी तू, कभी चूक तू इसमे कर जाता है
अपनो और मित्रो का फिर तू ही तो  निशाना बन जाता है

कभी अपने भाव दिखा देता है, कभी उन्हे छुपा जाता है तू
कभी भक्त बन जाता है, कभी खुदा से भी रुठ जाता है तू

-      प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

6 टिप्‍पणियां:

  1. प्यार मिल जाये किसी से तो मुस्कराता है तू
    रिश्ता टूटे तो खुद ब खुद कितना रोता है तू

    मन के रंग हजार

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  2. प्रति भाई ..मन चंचल ...खुद से सवाल करता है /कभी खुद पर हंसता है ..मन की मनोव्यथा का बड़ा ही निराला अंदाज़ में आपने ....व्याख्या की है ....

    जवाब देंहटाएं
  3. अरे प्रतिबिम्ब भैया आप उधर से कैसे गायब हो गये हैं ?
    आखिर बात क्या है जो आप उधर नहीं है
    फेसबुक के बात कर रहा हूँ मैं

    जवाब देंहटाएं
  4. मित्रो आपके स्नेह का शुक्रिया ..मै यंही हूँ आपके आस पास

    जवाब देंहटाएं

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