क्रोध मात्र एक शब्द नही, भरपूर है इसका भी संसार
ज्वाला इसकी विनाशकारी, बस मिलता इसमे अंधकार
क्रोध उपजता है
अंहकार से
उपेक्षा से
जिद्द से
भय से
घृणा से
ईर्ष्या से
स्वार्थ से
अन्याय से
तनाव से
क्रोध से हिंसा उपजे, बढ जाये नफरत और दरार
अपने तो होते है दूर लेकिन दुश्मन के भी झेले वार
क्रोध से..
ज्ञानी का पतन
साधु का अन्त
शान्ति का नाश
सत्य की मौत
तनाव का संचार
विवेक का पतन
स्वास्थ्य मे गिरावट
रिश्तो मे कड़्वाहट
लगती है हाथ निराशा
मिलती है बस निराशा
गीता में कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया है
क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
[अर्थात क्रोध से अविवेक एवं मोह होता है, मोह से स्मृति का भ्रम होता है
तथा बुद्धि के नाश हो जाने से आदमी कहीं का नहीं रह जाता]
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
कम शब्दों में लिखी कविता क्रोध पर लिखे किसी आलेख से कम नहीं..... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंक्रोध से होने वाले नुक्सान को सही परिभाषित किया है ....अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसंत करें संतई की बातें....जय हो
जवाब देंहटाएंप्रतिबिम्ब जी ! क्रोध पे लिखा गया आपका कविता आलेख कल चर्चामंच पर होगा .. १७-१२-२०१० को
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुब लिखा है आपने......आभार....मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ जिस पर हर गुरुवार को रचना प्रकाशित नई रचना है "प्रभु तुमको तो आकर" साथ ही मेरी कविता हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" at www.hindisahityamanch.com पर प्रकाशित..........आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे..धन्यवाद
जवाब देंहटाएंkrodh par ek samagra chintan prastut karti sundar rachna!
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