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शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

वक्त करवट लेता गया


वक्त करवट लेता गया

हर बीते पलो को समेटने लगा

संकुचित मन से वक्त को देखा

पीड़ा का अहसास उसमें पाया



दुखते और सुलगते घावों को

असहाय सा इस दौर में पाया

समझ न सका वक्त का इशारा

अपने को सवालों से मजबूर पाया



जीने कि चाह मे उठते गिरते स्वर

पल - पल वेदना के चुभते खंजर

सुख में ईश्वर का ध्यान हर पल आया

इस बार आंख ना उससे मिला पाया



इन सब के बीच कम हुआ न तेरा प्यार

हर पल संभालते रहा तेरे प्रेम का संगीत

साहस और शक्ति देता रहा तेरे प्यार का गीत

हर हार में भी महसूस की मैंने अपनी जीत

-प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल
(पुराने ब्लाग से ली गई रचना)


सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

ज़िंदगी!!!


मस्तिष्क के प्रांगण में

प्रतिद्वन्दता कराती जिन्दगी

उठाती - गिराती ज़िन्दगी

जलाती - बुझाती जिन्दगी

बनाती - बिगाड़ती जिन्दगी

रुठती - मनाती जिन्दगी



रुलाती लेकिन हंसाती जिन्दगी

इठलाती लेकिन खेलती जिन्दगी

चुपचाप लेकिन बोलती जिन्दगी

पूछती लेकिन उतर देती जिन्दगी



इन्कार - इकरार करती जिन्दगी

पास – फेल कराती जिन्दगी

मेल – बिछोह कराती जिन्दगी

प्यार – नफरत सिखाती जिन्दगी



हराती लेकिन सिखलाती जिन्दगी

रुकती लेकिन चलती जाती जिन्दगी

ढूँढती लेकिन महकती जिन्दगी

आंसू लाती लेकिन मुस्कराती जिन्दगी

- प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल

(पुराने ब्लाग से ली गई रचना)

रविवार, 14 फ़रवरी 2010

शांति शांति शांति


आतंकवाद का चेहरा

कैसा दिखता है
कोई जान नहीं पाया।
बस जान पाया तो केवल
दर्द, पीड़ा, भय और दशहत
खून, गोली, धमाका और नफरत
चारों ओर होते नज़ारे हताहत

फ़िर दिखती है
बिलखती दुनिया,
बढ़ती नफ़रत
प्रदर्शन करती जनता
उग्र होती भावनायें

एक आम इंसान
मूक दर्शक की भाँति
केवल सहम जाता है
अफसोस करता है
कल को संजोने कि आस में
फिर आँखे मूँद लेता है


कब होगी चारों ओर
शांति शांति शांति
कब रुकेगा आंतक, होगी
शांति शांति शांति
एक स्वर में विनती करे
शांति शांति शांति




- प्रतिबिम्ब बडथ्वाल 


(एक पुरानी रचना दुसरे ब्लाग से)
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