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गुरुवार, 9 सितंबर 2010

आओ सोचे..



रोटी रोटी करता है हर गरीब का पेट
स्वाभिमान से नही भरता गरीब का पेट
ईमानदारी से नही भरता गरीब का पेट
सांतवना से नही भरता गरीब का पेट

एक रोटी मिल जाये अगर
पेट शायद उसका भर जाये
जीने की आस शायद
आज उसे फिर मिल जाये

पेट पर हाथ फेरता है
हर कोई खाने के बाद
गरीब पेट पकड कर सोता है
हर शाम ढल जाने के बाद

खा पी कर मस्त है
जनता हो नेता हो या अभिनेता
गरीब तो बस सोचता है
काश एक रोटी का इंतज़ाम कर लेता

चित्र मे दिखता है
लेखो मे नज़र आता है
कविता मे नज़र आता है
क्या गरीब का पेट इस से भर जाता है

खा पी के सोचे हम
गरीब का खाली है क्यो पेट  
बस लिख कर वाह वाही बटोर कर
क्या भर पाते है हम इनका पेट

आओ अब मिल कर सोचे
अब तो भर चुके हम अपना पेट
बस एक सोच जगानी है
कैसे भरे अब हम उनका पेट

प्रतिबिम्ब बडथ्वाल, अबु धाबी, यूएई
[यह कविता मात्र रचना के लिये नही है आप एक हल भी लिखे]
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