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रविवार, 3 अक्तूबर 2010

माँ


मैने माँ को देखा है
उसके प्यार को पाया है
उसके तन से लिपट
खुद को मैने सींचा है
उसने अपने लहू को
दूध बना कर मुझे पिलाया है
आंच मुझ पर ना आने पाये
अपना आंचल मुझ पर डाला है
हर मौसम बनकर मां तूने
मुझे जीना सिखाया है
हर वार सहा वक्त का तूने
हर चोट से तूने मुझे उबारा है
आंसू मेरे ना निकले ये सोचकर
तुने आंसुओ को हर पल थामा है
हम को प्यार करते करते
खुद को तूने खूब रुलाया है

वक्त का झौंका कुछ येसा आया
इसी ने मुझे कठोर बनाया है
तेरे त्याग को चुनौती दी है
फिर भी बलिदान तुझी से मांगा है
तेरे प्यार को खुद् भूल गया
फिर भी गुनाहगार तुझे ही बनाया है
तेरे दूध का कर्ज़ चुका न पाया
आज तुझी से तेरा फर्ज़ पूछ रहा है
घर को घर जो बना न पाया
आज तेरा ही आशियाना छीन रहा है

जब जब समझ में मेरी कुछ आया
दे जाती है तू मुझको अब भी छाया
मेरे दुषकर्मो को हर पल तूने माफ किया
गलतिया जानकर भी सीने से लगा लिया
दूर रहूँ या पास प्रेम तेरा है हमेशा साथ
आश्रीवाद का उठता है सदा ही तेरा हाथ
त्याग समर्पण की तू तो मूरत है
भगवान की तू ही सच्ची सूरत है
इसी लिये बस इतना ही कहता हूँ
माँ तेरे आंचल मे ब्रह्मांड समाया है
             प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

कुछ लमहे यादो के


कुछ लमहे यादो के सैलाब में बह जाते है
हर याद में कुछ लमहे बस सिमट जाते है

याद तुम भी आते हो फिर कहीं खो जाते हो
बंद आँखो से देखता हूँ साथ अपने ही पाता हूँ

अहसास तेरा पाते ही आस संवरने लगती है
भाव पिघलने लगते है सांस बिखरने लगती है

फ़िर यादों में भी  दूर हो जाती हो
मृग- तृष्णा सी  नज़र आती हो

-       प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल, आबू दाबी, यू ए ई
(एक पुरानी रचना)
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