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मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

।।ऊँ जय ब्लागर मंडली।।



ब्लागर व्यथा ( एक व्यंग्य)

लिखना पढना सीखा, लिखने तब  मन को  समझाया
लिखने की जब सूझी, तब ब्लाग अपना मैने बनाया
ऊँ जय ब्लागर मंडली

दे नाम ब्लाग को फिर, उसे कुछ  चित्रो से सज़ाया
ढूढे कुछ विजेट नेट पर, फिर ब्लाग मे उन्हे लगाया
ऊँ जय ब्लागर मंडली

जा दूसरो के ब्लाग पर, देखा क्या मन को भाये
किल्क किया उन पर, फिर अपने ब्लाग पर लाया
ऊँ जय ब्लागर मंडली

ब्लागर देखे मैने बहुतेरे, कुछ अच्छे कुछ थे वंहा बुरे
अच्छा बुरा ना देखे कोई, बस नाम पर टिप्पणी करते सारे
ऊँ जय ब्लागर मंडली

नाम ना हो दोस्त ना हो तो, पोस्ट पर ना आये कोई
कुछ ब्लागर लिखते कुछ भी, फिर भी टिप्पणी देता हर कोई
ऊँ जय ब्लागर मंडली

हर तरफ 'गैंग' जैसा है जाल, चलते है जंहा सब अपनी चाल
महिला ब्लागर लिख दे कुछ भी, सब उसको कहते बस कमाल
ऊँ जय ब्लागर मंडली

अच्छे लेखो कविताओ पर, आये ब्लागर बस दो - चार
राजनीति या व्यंग्य जैसो पर, बस करते बात या प्रहार
ऊँ जय ब्लागर मंडली

लिखता रहता मै फिर भी, ना करता किसी की परवाह
मन के भावो को समेट कर, करता मै अपनी पूरी चाह
ऊँ जय ब्लागर मंडली

कुछ मित्रो से मिल जाता स्नेह, नाम की नही मुझको दरकरार
कभी समय मिले आप को भी, आये और नमन करे स्वीकार
ऊँ जय ब्लागर मंडली

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

रविवार, 17 अक्तूबर 2010

दशहरे पर सभी को बधाई!!


सत्य की झूठ पर जीत का जश्न मनाओ
अच्छाई की बुराई पर जीत का जश्न मनाओ

आओ मित्रों अपने अंदर के राम को जगाये
आओं मित्रों अपने अंदर के रावन को जलाये

राम भी हम रावण भी हम फिर संशय कैसा
छोड़ झूठ और बुराई, करे व्यव्हार इंसानों जैसा

प्रभु का ध्यान कर महिमा उसकी हम पहचाने
मार्ग अंहिसा का अपनाये,धर्म हम अपना पहचाने

विजय निश्चित है अगर हम आज ये प्रण करे
एक दूजे में प्रभु को ढूढे और मानवता से प्रेम करे

[मित्रों आप को, परिवार को, सगे संबधियों को एवं आपके मित्रों को विजय दशमी की शुभकामनाये]
– प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल



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