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बुधवार, 3 नवंबर 2010

चलो मनाये दीवाली रे


प्रेम का नाता है हर रिश्ते में मनाओ तुम  दीवाली रे
भूले सब भेदभाव नई जोत जलाये,चलो मनाये दीवाली रे

दोस्त और दुशमनी का जाल हटा आये येसी आज दीवाली मनाये रे
करे ध्यान प्रभु का, इंसानियत की लौ जला, आये दीवाली मनाये रे

धन दौलत का अंबार लगे, दुख से नाता रहे ना कोई, हर वक्त मनाये दीवाली रे
दुखी गरीब मानस को आज राह दिखाये उसका बनकर, येसी मनाये दीवाली रे

घर आंगन खुशी का दीप जले, सफलता से रोशन हो येसी दीवाली आये रे
मित्रजन स्वस्थ रहे, आशाओ को एक आयाम मिले येसी दीवाली आये रे

बस खुद से सवाल करना कैसे मनाये दीवाली रे
रखे ध्यान प्रदुषण का साफ सुथरी दीवाली मनाये रे

रोशन हो हर लम्हा सबका, जीने का मकसद ढूढे इस दीवाली रे
अपने से अलग होकर दुसरे की कुछ सोचे आओ दीवाली मनाये रे


[सभी मित्रो को, उनके परिवार को एवम सगे संबधियो को मेरे परिवार की ओर से  हार्दिक शुभकामनाये]
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

सोमवार, 1 नवंबर 2010

मन

         
मन क्या कहूँ तेरी व्यथा है अति निराली
कभी छटे जाए अधेरा कभी छा जाये बदली

देखा तुझको रोते हुये, देखा तुझको हंसते हुये
एक मन है तू फिर भी कितने रुप छुपाये हुये

दुख झेलता तू सारे, खुशी भी तुझे ही मिलती
दर्द समेटता अपने में, सज़ा भी तुझे ही मिलती

क्रोध प्यार का अनुठा संगम तुझमे है बसता
हर पीडा और खुशी का तू ही तो एक रस्ता

प्यार मिल जाये किसी से तो मुस्कराता है तू
रिश्ता टूटे तो खुद ब खुद कितना रोता है तू

कभी बन जाता बच्चा खेलता तू फिर खुद से
कभी बडा बन सयानी बाते करता तू खुद से

कभी सवाल करता कभी जबाब देता तू सारे
कभी खुद सवाल बन खुद को कोसता तू प्यारे

कभी विचलित कभी विस्मित कभी पागल तू बन जाता
कभी मान जाये झट से कभी नखरे तू बहुत है दिखाता

कभी खो जाता खुद में कभी किस से तू मिलकर आता
जो कहा नही कभी  किसी से वो सब तू बोलकर आता

खुद को समझा पाये कभी तू, कभी चूक तू इसमे कर जाता है
अपनो और मित्रो का फिर तू ही तो  निशाना बन जाता है

कभी अपने भाव दिखा देता है, कभी उन्हे छुपा जाता है तू
कभी भक्त बन जाता है, कभी खुदा से भी रुठ जाता है तू

-      प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
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