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शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

दोस्ती का आलम


मित्र बनाओ अभियान
बढाओ जान पहचान
बहुत है यंहा कद्रदान
सारे मित्र मेरे महान
महके मेरा खलिहान
जिंदाबाद हिन्दुस्तान

मुझे तुम लगते हो प्यारे
सपने जैसे सच हुये हमारे
हम है अब तुम्हारे सहारे
चलो साथ देखे अब बहारे
दोस्ती है बीच अब हमारे
चलो अब ये रिश्ता संवारे

एक हाथ मे उसका हाथ
दूजे हाथ में है दूजा हाथ
मन में भाये तीसरा हाथ
थामे अब चौथे का हाथ
येसे है मेरे कितने हाथ
छोड चले जो अब साथ

भरते है दोस्ती का दम
नही किसी से हम कम
वक्त पर छोड देते दामन
जैसे पडा हो कोई सामान
येसा है दोस्ती का आलम
सबको "प्रतिबिम्ब"का सलाम

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल , अबु धाबी

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

क्रोध



क्रोध मात्र एक शब्द नही, भरपूर है इसका भी संसार
ज्वाला इसकी विनाशकारी, बस मिलता इसमे अंधकार
क्रोध उपजता है
अंहकार से
उपेक्षा से
जिद्द से
भय से
घृणा से
ईर्ष्या से
स्वार्थ से
अन्याय से
तनाव से
क्रोध से हिंसा उपजे, बढ जाये नफरत और दरार
अपने तो होते है दूर लेकिन दुश्मन के भी झेले वार
क्रोध से..
ज्ञानी का पतन
साधु का अन्त
शान्ति का नाश
सत्य की मौत
तनाव का संचार
विवेक का पतन
स्वास्थ्य मे गिरावट
रिश्तो मे कड़्वाहट
लगती है हाथ निराशा
मिलती है बस निराशा

गीता में कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया है
क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
[अर्थात क्रोध से अविवेक एवं मोह होता है, मोह से स्मृति का भ्रम होता है
तथा बुद्धि के नाश हो जाने से आदमी कहीं का नहीं रह जाता]
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

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