रुठना खासियत है उनकी, खिसियाना अब आदत बन गई
खिझाना वो छोडते नही, मौजदूगी मेरी अब खुरचन बन गई
खामोश हूँ मैं तेरी खातिर, ख्वाहिश थी तेरी, खैरात नही मांगी थी
खस्ता हाल है, खोखला सा जीवन, ख्वार की मुराद नही मांगी थी
खंगालता रहा मैं अपना इश्क, ना जाने क्यो खटकता रहा उन्हें
खटिक सा घूमा मैं उनके शहर और गली, खबर भी ना हुई उन्हें
खंख है जीवन,खपने लगा मैं, खंभार सा रिश्ता, खंडहर सा मैं
ख्यालि नही अब खंडित हूँ मैं,खरमास की तरह खटकता रहा मैं
खलियान सा खिले सोचा था,लेकिन खारा हुआ अब तो रिश्ता
खिदमत का कंहा मिला मौका, एक खरोंच से टूटा अब ये रिश्ता
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल