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शुक्रवार, 3 जून 2011

प्रतिक्रिया [टिप्पणी/कमेंट्स] की जुबानी



आपकी भावनाओ को जब देखा तो मुझे ये ख्याल आया
मैं प्रतिक्रिया हूँ आपकी जिसे आपने मन से है लिख दिया
मित्रो की दीवार या किसी पोस्ट में तुमने जब उत्तर दिया
अपने स्नेह का चोला पहना तुमने खूबसूरती से सज़ा दिया

कुछ लिखना अब भूल गए है या कहीं वो खो गए है
कुछ पसंद का चटका लगा मुझसे किनारा कर गए है
जानती हूँ इतने मित्रो संग मुझे तुम कैसे लिख पाओगे
खुश होंगे वे भी गर भूले बिसरे मुझे चस्पा कर जाओगे


खुश हो जाती हूँ जब मित्रो की पोस्ट पर छोड़ जाते हो
देख अन्य तुम्हारे साथीमुझे एक सहेली तब दे जाते है
कुछ हमे हंसा कर छोड़ जाते है तब हम खिलखिला उठते है
कुछ कड़वापन घोल जाते है तब हम अपने से घृणा करते है

मैं जब-तब भी तुम्हारे मित्रो की पोस्ट पर नज़र आती हूँ
सच कहूँ मुझे देख तुम्हारा वो मित्र फ़ूले नही समाता है
मुझे देख उसमें कुछ और लिखने का उत्साह भर जाता है
मुझ मे सच्चाई देखवो अच्छा लिखने का प्रयास करता है

कहीं अच्छी दिखती हूँ तो कहीं मैं खुद ही शर्मा जाती हूँ
कहीं एक झलक दिखला कर सबको विस्मित कर जाती हूँ
दिखलाओ तुम स्नेह उनके प्रतिफिर देखना तुम खुशी उनकी
आज मन से संवार कर सजा दो मुझे तुम दीवार पर उनकी

- प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल 

3 टिप्‍पणियां:

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