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गुरुवार, 4 अगस्त 2011

मन की परतें.....



मन की परतें .......

मन बता तेरी कितनी परते है
जिसमे अहसास अपनें भरते है
तुझसे ही अपनी बात करते है
फिर भी कुछ कहने से डरते है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….

मेरे संग ही तू हँसता और रोता है
मेरे संग ही तू जागता और सोता है
मेरे संग ही तू भागता और रुकता है
मेरे संग ही तू सोचता और बोलता है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….

मन के हर कोने में इच्छा बसती है
इसमे ही तो मेरी खुशियाँ पलती है
मेरी हार तुझको भी दुखी करती है
इसमे ही तो मेरी निराशा जलती है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….

मेरा गुस्सा तुझमें आक्रोश भरता है
मेरा प्यार को तू ही तो समझता है
मेरे दर्द से तू भी व्यथित हो जाता है
मेरे ही सवालो से फिर घिर जाता है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….

इसी में डर रिश्तो का समाये रहता है
इसी में रिश्तों को तू बनाए रखता है
दोस्ती की पहचान कभी करा देता है
कभी उन्ही को अंजान तू बना देता है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….

विश्वास मुझमे जगा तू हौसला देता है
कभी अविश्वास को बीच में ले आता है
वक्त से लड़कर तू मुझे स्थिरता देता है  
पल पल मे फिर क्यों तू बदल जाता है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….

पलते है सपने इसमे मेरे अरमानों के
खुलते है पट इसमे मेरी भावनाओ के
जलते है चिराग इसमे मेरी आशाओ के
फलते है वृक्ष इसमे प्रेम और दुआओं के
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….

जीवन - संगीत के तुझमें ही छुपे राग है
मिलन - विरह के तुझमे ही बजते साज है
उमर और वक्त की रहती तुझमें छाप है
भक्ति और शक्ति की बसती तुझमें जान है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….

मन और मैं यूं तो साथ - साथ चलते हैं
पर कभी आपस मेँ ही लड़ते - झगड़ते है
दुविधा और सुविधा को बखूबी पहचानते है
कभी जानकार भी अंजान हम बन जाते है
मन बता तेरी कितनी परतें है ………….

समाज और देश की चिंता मुझको सताती है
प्रेम और दुश्मनी का भाव मुझमे जगाती है
मन तुझमे ही तो सोच बनती - बिगड़ती है
मन तुझमे ही तो मेरी सारी दुनिया बसती है
मन मुझे पता है तेरी कितनी परतें है ………

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

7 टिप्‍पणियां:

  1. ये मन होता ही ऐसा है जहाँ हमेशा कुछ बिचार चलते ही रहते हैं...बहुत सुंदर रचना है, प्रति जी.

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  2. मन की परतों की कोई थाह नहीं ... भावनाओं का बंधन है ये मन ... और इसकी सुन्दर अभिव्यक्ति ...

    जवाब देंहटाएं
  3. काश! हम गिन पाते इन परतों को...परत दर परत खुलते खुलते न जाने कब जिन्दगी बीत जाती है...पता ही नहीं चलता...

    उम्दा रचना...

    जवाब देंहटाएं
  4. मन की परतें .......-अति सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. समाज और देश की चिंता मुझको सताती है
    प्रेम और दुश्मनी का भाव मुझमे जगाती है
    मन तुझमे ही तो सोच बनती - बिगड़ती है
    मन तुझमे ही तो मेरी सारी दुनिया बसती है
    मन मुझे पता है तेरी कितनी परतें है ………
    ...sach man ki gati ka koi maap nahi...
    bahut sundar sandeshparak rachna..

    जवाब देंहटाएं
  6. ये मन कितना चंचल... खूब।... प्रमोद

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आपकी टिप्पणी/प्रतिक्रिया एवम प्रोत्साहन का शुक्रिया

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