देखता रहा तुझे आते हुये
तेरे साथ ही मैं जिया।
कभी तूने प्यार दिया,
कभी तूने रास्ता दिखाया,
कभी खुशी और कभी गम,
तूने मुझे इस राह में दिया।
तेरे साथ,
कभी चला,
कभी लडखडाया,
कभी दौडा।
तेरे साथ
ठहरने का मन हुआ,
लेकिन रुक नही पाया,
क्योकि निरंतर चलना,
तेरी फितरत है।
तेरे इशारो पर,
नाचता रहा अब तक,
कभी सिर झुकाया
कभी सीना चौड़ा किया।
सोचा भी,
तुझसे आगे निकल जाऊँ,
लेकिन एक पल भी
तेरे बिन
आगे ना चल पाया।
सोचा,
तेरे साथ बिताये पलो में,
फिर से शामिल हो जाऊँ।
लेकिन वो तो बीत गया,
यादो को समेटने के सिवाय,
मैं कुछ न कर पाया।
लेकिन ये कैसा सच है,
जिसमे पीछे और आगे
जाने की मनाही है।
बस तेरे साथ चलना
हकीकत भी है
और मज़बूरी भी है।
समय !!!!
मेरा वादा है तुझसे,
तेरे साथ चलने का।
जब तक चल सकूंगा,
अपना कर्तव्य निभाऊंगा।
मातृभूमि और कर्मभूमि,
से अपना रिश्ता निभाऊँगा।
तेरे साथ ही चलकर मैं,
अपनो से फर्ज़ निभाऊँगा।
समय आज ही तू मेरे साथ है,
कल के लिये खाली मेरे हाथ है।
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल