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गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

कंहा है अब तू भगवान….



[एक विनती ]

पूजते तुझे सब, फूल चढाता तुझ पर हर कोई
किसी को मिलता भरपेट,सोये यंहा भूखा कोई

पैसे और स्वार्थ की खातिर कितना बदल गया इंसान
कुछ तो बदल तू आकर यहाँ, कंहा है अब तू भगवान

एक तेरे बच्चे सब, फिर क्यो देख कर तू बनता अंजान
कोई धनवान,कोई बेईमान, पर ना बन सका कोई इंसान

अपने सुख की खातिर याद करते है सब तुझे भगवान
प्रेम जिन्हे आता नही, फिर तू कैसे उन्हे मिले भगवान

कोई कहता अल्लाह,कोई जीसस,कोई कहता तुझको भगवान
एक तू, नाम अनेक, फिर भी क्यो तेरे नाम से लडते सब इंसान

तू सब्को देने वाला, फिर भी तुझे ही चढाते सोना और पैसा
दे उनको सदबुद्धी तू, समाज का भला हो काम करे कुछ येसा

भ्रष्टाचार, आंतक, स्वार्थ का आज केवल दिखता है यंहा  शोर
मन में तू आकर बैठ, ले चल इन सबको तू इंसानियत की ओर

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
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