एक है जो उपर बैठा
तय करता है
मुक्कदर मेरा
जीना मेरा
या उम्र मेरी
वक्त का चाबुक
कुछ येसा चलता है
काम येसा कर जाता हूँ
जो तकदीर बन जाता है
कभी संवर जाती है
कभी बिगड़ जाती है
जीता हूँ अपनी धुन में
सोचू मेरे कर्मो का नतीज़ा
या भुगत रहा प्रारब्धो को
चलो जो भी हो
फायदा मेरा ही है
चाहे इस जन्म मे या
फिर अगले जन्म मे
कर्म प्राथकमिता है
प्रेम मेरा अस्त्र है
मन मेरा शस्त्र है
जंग रोज जारी है
देख ले हे मेरे ईश्वर
तू तो सर्वत्र है
उपर वाले अब जो तेरी रज़ा है
मै तो बस इतना ही जानता हूँ
मिल जाये जो चाहा तो मज़ा है
ना मिल पाये तो सोचूं सज़ा है
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल