पृष्ठ

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

जिंदगी सज़ा या मज़ा




एक है जो उपर बैठा
तय करता है
मुक्कदर मेरा
जीना मेरा
या उम्र मेरी

वक्त का चाबुक
कुछ येसा चलता है
काम येसा कर जाता हूँ
जो तकदीर बन जाता है
कभी संवर जाती है
कभी बिगड़ जाती है

जीता हूँ अपनी धुन में
सोचू मेरे कर्मो का नतीज़ा
या भुगत रहा प्रारब्धो को
चलो जो भी हो
फायदा मेरा ही है
चाहे इस जन्म मे या
फिर अगले जन्म मे

कर्म प्राथकमिता है
प्रेम मेरा अस्त्र है
मन मेरा शस्त्र है
जंग रोज जारी है
देख ले हे मेरे ईश्वर
तू तो सर्वत्र है

उपर वाले अब जो तेरी रज़ा है
मै तो बस इतना ही जानता हूँ
मिल जाये जो चाहा तो मज़ा है
ना मिल पाये तो सोचूं सज़ा है

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...