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बुधवार, 27 अप्रैल 2011

रात ने कहा


जाती हुई रात ने पूछा
कैसी थी रात 'प्रतिबिंब'
हमने भी कह दिया
रात गई बात गई
अब तो उगते सूरज
को सलाम किया है

अब अपनों से
रूबरू हो सकूँगा
जो सपना देखा
उसे सजाने के लिए
कर्म तो करना होगा
बस शर्त इतनी रखी है
स्वयं से वादा किया है
जो करूंगा दिल से करूंगा
ईमानदारी से करूंगा
अपनी मुस्कराहट के लिए
दूसरों के चेहरे पर
मुस्कराहट लाऊँगा।

ये रात चल जाने दे अब
फिर तुझसे मिलना होगा
तुझ से सब कहकर
खुद को समझाऊंगा
फिर तुझ से लिपट कर
मैं  फिर सो जाऊंगा

- प्रतिबिंब बड्थ्वाल
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