फेसबुक तू और तेरा हर रूप लगे हैं हमें महान
कभी देता हमें खुशी, कभी कर देता हमें हैरान
चित्रो, नोट्स व वीडियो का करते आदान प्रदान
अपने ग्रुप व पेज से कराते एक दूजे को पहचान
फेसबुक ‘टैग’ का तूने किया है इनमें सुंदर प्रयोग
हमने भी जब चाहा, किया इसका खूब उपयोग
बेझिझक कर देते हैं, हम सब में शामिल उनको
जिन्हें समझा मित्र या समझा है अपना जिनको
कुछ मित्र तो झाँकते भी नहीं चाहे कर लो कितने टैग
कुछ मन से, कुछ बेमन से लगा जाते हैं पंसद का भोग
कुछ मित्र ‘टैग’ से झुँझला कर देते हैं लिस्ट से हमें दफा
सेटिंग वो बदल सकते नहीं लेकिन हम से हो जाये खफा
सीमा है ‘टैग’ की वरना कितने हो जाते इससे परेशान
फिर भी ‘’टैग’ करो बिंदास, कर जाते स्नेही मित्र ऐलान
अपना जान कई मित्र कर जाये हमें खुश देकर प्रोत्साहन
कुछ मन से प्रतिक्रिया देते,करते नहीं इसका वो कोई गुमान
वैसे सच कहूँ, मेरे लिए ‘टैग’ तो एक बहाना है
असल में बस कुछ पल आपसे यूँ रूबरू होना है
कुछ अपनी कहनी है और कुछ आपकी भी सुननी है
आज फिर टैग होंगे आप, ये कविता भी तो पढ़वानी है ।
- - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल