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शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

चाल .......




मैं चला,
तुम चले,
अपनी अपनी चाल।
फिर भी खड़े है
आज भी वही सवाल

मौन क्यों है आत्मा?
दूर क्यों है परमात्मा?
खोई क्यों है इंसानियत?
झुलसती क्यों है मानवता?

चेतना अब केवल झुंझलाती है
अन्याय अब केवल आह भरती है
मुस्कराहट अब केवल छलती है
सच्चाई अब केवल दम तोड़ती है

झूठ और अहंकार मिल बैठे है
स्वार्थ और अरमान मिल बैठे है
दोस्त और दुश्मन मिल बैठे है
प्यार और नफरत मिल बैठे है

एक तेरी चाल और एक मेरी चाल
बस नही कोई समझे वक्त की चाल
फिज़ाओ ने बदली हवाओं की चाल
इन सबके आगे बेबस है हमारी चाल

आओ मिल कर अब हम चले चाल
वक्त से लड़ने का यूं हम करे कमाल
एक जुट होकर रखे अब नई मिशाल
खुद का नहीं देश हित का है सवाल

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

रविवार, 28 अगस्त 2011

नई सुबह



आज
एक नई सुबह का आगाज हुआ
वातावरण तब अन्नामय हुआ
एक साकार संदेश फिर
आसमां पर यूँ उभर आया है
मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना
अब तो सारा देश है अन्ना


आसमान पर
आज तिरंगा फिर लहराया
जन जन ने तिरंगा ले हाथो में
भारत मे आज़ादी का जश्न पुन: मनाया
अब जनता ने एक मंत्र है पाया
मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना
अब तो सारा देश है अन्ना


शायद ये
शुरुआत हुई है नई क्रांति की
ये लड़ाई पहचान बनी है शांति की
भ्रष्टाचार के दानव को मिटाना है
बस याद रखना होगा इतना अब
मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना
अब तो सारा देश है अन्ना


ये तारीख
गवाह बनी है असली लोकतन्त्र की
जनता ने बदली है आज सूरत इसकी
वर्षों मे देखेंगे शायद नतीजा इसका
अंबर और धरती पर गूंज उठा है
मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना
अब तो सारा देश है अन्ना


अब
जीत को विजय मे बदलना होगा
वक्त के साथ हमे बदलना होगा
अन्ना का संदेश रोज गुंगुनाना होगा
अन्ना बन खुद को जीना होगा
मैं भी अन्नातू भी अन्ना
अब तो सारा देश है अन्ना

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

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