पृष्ठ

रविवार, 1 जनवरी 2012

आखिर विदा हो गया






पहले साथ था
उठते बैठते, खाते पीते
हँसते लड़ते, सोते जागते
हर हार मे, हर जीत मे
हर सुख मे, हर दुख मे
रात के अंधेरे मे, सुबह की किरणों मे
दिन के उजाले मे, सांझ के ढलने मे

कितनी बार रोकना चाहा
खुशी को,
जाने वाले को
जीत को,
प्रेम के पलो को
पर हर बार नाकाम रहा

कितनी बार बदलना चाहा
कुछ फैसलों को
कुछ लम्हों को
बहुत सी घटनाओं को
बहुत सी समस्याओं को
लेकिन टस से मस न हुआ

और अब खुद ही
हमसे अलविदा कह गया
केवल याद बन कर रहेगा
खोया पाया के सवाल बनकर
वक्त के हाथो फिर से सौंपकर

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल   [०१ / ०१ / २०१२]

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब ...वो चला गया बहुत सी यादें बहुत से अहसास देकर ..... बीत गया ..............शुभ कामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह !बहुत खूब !वक्त कब किसके रुका ,कब माना ,हमने ही यादे बनकर उसे संजोया ...सुंदर रचना !बधाई !

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी/प्रतिक्रिया एवम प्रोत्साहन का शुक्रिया

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...