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गुरुवार, 5 जुलाई 2012

सुनो !! अतीत कुछ कह रहा


हे मानव
तू मुझे छोड़
दौड़ता जा रहा है
बस अपनी ही धुन में

ये सच है की
मैं ही तुम्हें आगे बढ़ाता हूँ
पर तुम तो
मुझे धकेलकर
आगे दौड़ रहे हो

जानता हूँ
रुकना तेरी नियत नही
मुड़ कर देखना फितरत नही
पर तुम तो
स्नेह आदर संस्कृति संस्कार
का तिरस्कार कर चुके हो
इंसानियत का गला घोट चुके हो
बस अपने नाम के लिए
मुझे ही बदनाम कर रहे हो
स्वार्थ और धोखे की चढ़ सीढ़ी
खुद को ऊंचा समझ मुस्कराते हो

सिखलाने तुमको जीवन सत्य
सिखलाने तुमको जीवन मूल्य
परंपराओ का लिया सहारा था
आज सफल हुये जो जीवन मे
तब भी मुझ पर अंगुली उठाते हो
खुद कारण बने असफलता का
अब कारण मुझे बताकर कोसते हो

वैसे तुम पर एतबार कैसा ?
ममता का झूठा ढोंग करते हो
ममता की मूरत कन्या को
तुम जीवन से पहले मौत देते हो
जंन्म देकर पाला पोसा जिसने
तुम उन्ही को तिरस्कृत करते हो
हर सुख त्याग, प्यार और खुशी दी जिसने
अपने सुख की खातिर दुखी उनको करते हो
फिर भी निवेदन है तुमसे
कन्या को जीवन दे लक्ष्मी घर आने दो
माँ - पिता को हर पल खुद मे जिंदा रखो
इन रिश्तो की डोर को अतीत मत बनने दो

मैंने चलने से, कब तुमको रोका है
तुम्हारे आगे बढ्ने से तो, मैं वजूद मे रहता हूँ
अतीत बनकर, जिंदा रहूंगा सदा
बस एक विनती है, धीरे चलना
इस आज को भी, तो अतीत बनना है
जो मैंने सिखाया, तुम उसे भूलना नही
प्यार और सम्मान का हक, तुम सबको देना
परंपराओ को अपनी, अपवाद मत बनने देना
अपनी संस्कृति संस्कार का परिहास करना नही
जीवन मूल्यो को अपनाना, उनसे खेल खेलना नही
अच्छे बुरे का स्मरण कर लेना, सच को बस अपना लेना
अतीत हूँ, पर याद रखना आज भी तुम्हें कुछ सिखला जाऊंगा

- प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल

5 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ..भाई जी जवाब नहीं आपका ..सलाम आपकी अनमोल कलम को

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  2. सार्थक भावभिव्यक्ति... समय मिले आपको तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।

    जवाब देंहटाएं
  3. एक तरफ मानव अपनी फितरत नहीं छोड़ पा रहा है और दूसरी तरफ सामने खड़ा उसी का ज़मीर उसको उसके सच का आईना दिखा रहा है....साथ ही उसका मार्ग दर्शन भी करता जा रहा है।...."अपनी संस्कृति संस्कार का परिहास करना नहीं/जीवन मूल्यों को अपनाना, उनसे खेल खेलना नहीं".....बहुत ही सुन्दर और सफल अभिव्यक्ति है।

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