मन बहुत उतावला होता है। इसमे न जाने कितने सवाल उठते है या जबाब मिलते है। चाहे उनमे मै स्वयं ही घिरा हूं या फ़िर समाज या देश के प्रति मेरी उदासीनता या फ़िर जिम्मेदारी। आप भी मेरी इस कशमकश के साथी बनिये, साथ चलकर या अपनी प्रतिक्रिया,विचार और राय के साथ्। तेरे मन मे आज क्या है लिख दे "चिन्तन मेरे मन का" के पटल पर यार, हर पल तेरी कशिश का फ़साना हो या फ़िर तेरी यादो का सफ़र मेरे यार।
आपने अपने ब्लॉग की एक अच्छी कोशिश की है। इसमें सबसे पहले ध्यान देने वाली बात ये है कि ये आपका ही मंच है, जिसपर आपके आलोचकों की आपसे ज्यादा पैनी नज़र है। हिंदी ब्लॉग है, जिसमें व्याकरण और ग़लतियों पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है, यदि इसमें सुधार हो जाए तो और भी गुणवत्तायुक्त कहलाई जाएगी। यूं तो हमसे भी भूल से ग़लतियां छूट जाती हैं, लेकिन किसी भी रचना में ऐसा दोष तो नकारात्मक परिणाम ही माना जाएगा। कविताओं में भी मात्राओं और शब्दों का संतुलन...? ध्यान देने से सब ठीक हो जाएगा। हिंदी के लिए आप जो कार्य कर रहे हैं, वो प्रशंसनीय है। दिनेश शर्मा-स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम http://www.swatantraawaz.com
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