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रविवार, 27 अक्तूबर 2013

पन्ना मोहब्बत का




खोल दिल की किताब
बांच लेना बोल मोहब्बत के
कब तक पन्ने पलटते रहोगे
निकल न जाए मौसम प्यार के

इस पन्ने को पढ़ कर
प्रेम का दिया दिल में जला लेना
किताब का मोल न लगाना
बस उभरे भावो को समेट लेना

आँखों में पनप दिल में उतरता है
दिल दिमाग संग सफ़र करने लगता है
सोच रुक जाती है उस हम सफ़र तक
सपनों को जीने का  फिर दिल करता है

प्यार में देना ही मोहब्बत है
प्यार को पाना नसीब की बात है
'प्रतिबिंब' जीते है लोग रह कर जुदा
प्यार करने वालो के दिल में बसता खुदा

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

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