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गुरुवार, 20 नवंबर 2014

दिया बुझता है ...



पलट रहा किताब मोहब्बत की
शाम से ही गीत पुराना सुन रहा हूँ
रात की आहट सुनाई देने लगी है
अँधेरे में दिया यादो का जला रहा हूँ

इस रात में कितना शोर है आज
तिमिर घनघोर धरा पर छाया है
मिलता था साथ जिनका रात भर
उन चाँद तारो ने मुंह मोड़ लिया है

जीत का था जिस पर हमें भरोसा
जिन्दगी का वो दाँव हम हार बैठे है
जिन भावो में मिलती थी प्रेम सौगात
वो तमाम एहसास आज हार बैठे है

हर रात, हर बात होती थी उनसे
आज हर बात उनसे अधूरी रह गई
हवा का झोंका महक बिखेरता था
आज हवा भी दिल दुखा के रह गई

इश्क पर फक्र होता था आज तक
अब इसके हर रंग से डर लगता है
रात ख्यालो में कट जायेगी 'प्रतिबिंब'
सुबह के ख्याल से दिया बुझता है

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

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