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शनिवार, 26 जुलाई 2014

शहीदों की चिताओ पर ....



कठिन परिस्थितियों संग
जवानो ने दुश्मन के हर वार झेले
देश की आन बान शान के लिए
ये जाबांज जान हथेली पर लेकर चले

दुश्मनों को मुंह तोड़ जबाब देने
ये दिलदार सर पर कफ़न बाँध कर चले
कभी अपनी टुकड़ियों के साथ
मौका मिला तो दुश्मन से लड़ते रहे अकेले

घर परिवार को छोड़ कर
भारत माँ के लिए रण बाँकुरे मरने मिटने चले
शौर्य बलिदान की रख मिसाल
कोई डटा मैदान में, कोई घायल कोई शहीद हो चले

धर्म जात पात की सोच नही
हर सिपाही भारत माँ के सच्चे सपूत बन कर चले
ज़ज्बा तिरंगे की खातिर दिखता है
दुश्मन को मार भगा इसमें लिपट दुनिया छोड़ चले

शहीदों की चिताओ पर
क्या लगते रहेंगे यूं ही हर वर्ष मेले
ख़ास दिन क्यों याद करे इन्हें 'प्रतिबिंब'
आओ रोज उनकी कुर्बानी का अहसास करते चले

सोमवार, 21 जुलाई 2014

लिखना ....



शौक है मेरा लिखना
पढना तो तुम्हे है
समझना भी तुम्हे है
शब्दों और लय को
संगीत तुम्हे देना है
अर्थ और भावार्थ की
दूरी तुम्हे तय करनी है
दर्द या मोहब्बत को
तुम्हे महसूस करना है
अपराध और अपवाद का
भेद तुम्हे करना है
काले अक्षर और सफ़ेद पन्नो पर
रंग तुम्हे भरने है

हाँ यह निर्भर करता है
तुम्हारी उम्र पर
तुम्हारी सोच पर
तुम्हारे ज्ञान पर
तुम्हारे अनुभव पर
तुम्हारी संवेदनशीलता पर

मेरे शब्द जाल सरल है
मेरी सोच की तरह
मेरे नजरिये की तरह
मेरे अल्प ज्ञान की तरह
मेरे खट्टे मीठे अनुभव की तरह

मेरे दिल और दिमाग का
'प्रतिबिम्ब'
तुम्हे अपने मन - मस्तिष्क पर
प्रतिबिंबित करना है

मेरा शौक तो बस लिखना है
शब्दों को आप तक पहुंचाना है
अच्छा या बुरा यह आपको तय करना है  

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