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शनिवार, 1 नवंबर 2014

मिलन और विरह के बीच




मेरे शहर की याद
ले आई तुम्हारे पास
तुमसे मिलना
मिलकर बिछड़ना
और हाँ याद आया
मिलन और विरह के बीच

शोर करती हुई खामोशियाँ
प्रेम के पन्ने बांचती आँखे खेलती खेल
तन मन में उभरते कोमल अहसास
तन मन पर लिपटती अहसासों की बेल

तन मन पर फैलती तुम्हारी खुशबू
आँखों में 'प्रतिबिंबित' होती हुई शरारत
गालो में अंकुरित चाहत के लाल पौधे
प्रकृति के सतरंगी रंग देते हुए साथ

अंगडाई लेती, कसमसाती ख्वाइश
तन मन में विद्दुत प्रवाह दौड़ता सा
स्पन्दन करती लहरों का समावेश
समुद्र की गहराई में छूटता पसीना सा

और फिर
मिलन में सम्पूर्णता की लिए आहट
बयाँ करती
अधरों में उभरती महकती मुस्कराहट

मेरे शहर की याद
मिलन से विरह के बीच
और फिर से
मिलन की चाह  लिए .....


- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

बुधवार, 29 अक्तूबर 2014

ये वक्त





ये वक्त
तू चल मैं आता हूँ
आखिर तूने
आगे चलना सीख लिया
सोच तो हमारी
तेरे साथ चलने की थी
लेकिन तूने
कदम कदम पर
बेगाना सा व्यवहार किया
मंजिल से पहले ही
बढ़ते कदमो को रोक दिया
मोहब्बत तुझसे की थी
लेकिन तूने दुश्मनी निभाई
अब साथ चलू भी तो कैसे
हर मोड़ पर तूने की बेवफाई

ये वक्त
चल तू अब आगे आगे
देखूगा तूने क्या है बिसात बिछाई
तेरी चालो से पहले
समझ लूँगा मैं तेरे सारे मंसूबे
तू चलते रहना अपनी चाले सभी
मैंने हौसला खोया कहाँ है अभी

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
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