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शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

कल आज



अहसास संग है
साथ कोई नही है
दिल बाते करता है
सुनता अब कोई नहीं है

भावो की कतार है
शब्द खड़े लाचार है
सच अकेला है
झूठा का विस्तार है

आइना दुश्मनों का है
चेहरा उसका अपनों सा है
कदम मंजिल के प्यासे है
पानी मरीचिका सा है

दिल बीमार है
हर कोई बना हकीम है
भूख अब बिकती है
कलम बनी सौदागर है

नर नारी का नारा है
विचारो का उभरता भेद है
धर्म कर्म का अभाव है
संस्कृति संस्कार पर खेद है

रिश्ते पवित्र है
स्वार्थ से प्रताड़ित है
जोड़ना रणनीति है
तोड़ना अब राजनीति है

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

सोमवार, 24 नवंबर 2014

सुप्रभात



तुम्हे नींद तो
अच्छी आई होगी
सपनो और एहसासों का
मिलन खूब हुआ होगा
भोर की किरणों से
आँख तुम्हारी खुली होगी
अब सपनो की खोज
और एहसासों को जीना होगा
प्रतिबिंबित होगी हर सोच
जब आशा और आंकक्षा का
हकीकत के धरातल पर मिलन होगा
पथ स्पष्ट और मंजिल निकट
तब जीने का मज़ा दुगना होगा
मिलेगा फिर सुखद एहसास
जब सपना सच्चा और अपना होगा

शुभम 

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
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