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शुक्रवार, 20 मार्च 2015

~खामोश ज़ज्बात ~




हालात मेरे पक्ष में आज भी नही 
वक्त की अपनी हर चाल सही 
उसे समझने की समझ मुझे नही 
महसूस हुई जो बात वही कही

चुपचाप चलना सीख  लिया 
खामोश उतर देना सीख लिया  
अहसासो से मुंह मोड़ना सीख लिया 
देखो हमने भी वक्त से ये सीख लिया 

महफ़िल में भी अकेले होने लगे 
न चाह कर भी मुस्कारने लगे 
दूरियों को भी हम झुठलाने लगे
इश्क की झूठी कसम खाने लगे   

कसमे वादे भी अब मुंह मोड़ रहे 
खामोश ज़ज्बात भी दम तोड़ रहे 
वक्त के नतीजो पर 'प्रतिबिम्ब' 
हम बेमतलब के अक्षर जोड़ रहे 

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