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सोमवार, 6 जुलाई 2015

जख्म




तब चल रही थी बयार कुछ हल्की हल्की
बरस रही थी तब फुहार कुछ हल्की हल्की
अहसास मन में भीग रहे थे कुछ धीरे धीरे
चाहत के फूल खिलने लगे थे कुछ धीरे धीरे

ख्वाब हकीकत से लगने लगे थे होले होले
कश्ती प्यार की तैरने लगी फिर होले होले
खुशबू से उसकी महकने लगे थे तन मन
संगम प्रीत का महसूस कर रहे थे तन मन

फिर वक्त और किस्मत चलने लगे संग संग
टूटने लगे वो ख्वाब सारे जो बुने थे संग संग
वक्त का आंधी तूफ़ान करने लगा हमें दूर दूर
कल थे पास पास आज हम हो गए है दूर दूर 

जानता हूँ किस्मत के सितारे बदलते है पल पल
भावो में छिपी आस की जंजीर टूटती है पल पल
‘प्रतिबिम्ब’ ये जिंदगी यूं भी सताती है कभी कभी

जिंदगी जख्म पर जख्म देती जाती है कभी कभी 

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

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