तब चल रही थी बयार कुछ हल्की हल्की
बरस रही थी तब फुहार
कुछ हल्की हल्की
अहसास मन में भीग
रहे थे कुछ धीरे धीरे
चाहत के फूल खिलने
लगे थे कुछ धीरे धीरे
ख्वाब हकीकत से लगने
लगे थे होले होले
कश्ती प्यार की तैरने
लगी फिर होले होले
खुशबू से उसकी महकने
लगे थे तन मन
संगम प्रीत का महसूस
कर रहे थे तन मन
फिर वक्त और किस्मत
चलने लगे संग संग
टूटने लगे वो ख्वाब
सारे जो बुने थे संग संग
वक्त का आंधी तूफ़ान
करने लगा हमें दूर दूर
कल थे पास पास आज
हम हो गए है दूर दूर
जानता हूँ किस्मत के सितारे बदलते है पल पल
भावो में छिपी आस की जंजीर टूटती है पल पल
‘प्रतिबिम्ब’ ये जिंदगी यूं भी सताती है कभी कभी
जिंदगी जख्म पर जख्म देती जाती है कभी कभी
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
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