रिवायत बदली है
अब नजरिया बदल गया है
जिन्दगी का मकसद
अब बदल लिया है
तुम्हारे मन की बात
कोई और लिखने लगा है
मुझसे ज्यादा तुम्हे
कोई और पहचानने लगा है
तुम्हारी खुशबू का एहसास लिए
समेट रहा हूँ तमाम यादें
आवाज़ दे रहा हूँ खाली घर में
पलट कर कोई बोलता नही
अपनी ही आवाज के शोर में
अब दम सा घुटने सा लगा है
गूँज रहे है कहकहे कहीं दूर
उठ रही टीस उस हर हंसी पर
बदल रहा हूँ
तुमसे जुडी आदते कुछ ख़ास
ढूंढ रहा हूँ
खोया हुआ हर छोटा अहसास
वो चाह, वो बैचनी
अब कही ओझल हो चुकी है
या फिर शायद
किसी कोने में दम तोड़ती मिले
हाँ यादो का हर कोना
मेरे बहुत करीब आ रहा है
शायद आखिरी बार
मिलन की चाह लिए .......
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणी/प्रतिक्रिया एवम प्रोत्साहन का शुक्रिया