पृष्ठ

रविवार, 23 अगस्त 2015

क्यों ?





जमाना हो गया हमें उस एहसास से गुजरे हुए
उनका दिल, आँखे बात मुझसे करते क्यों नही ?

जानता हूँ रास नही आती अब उन्हें चाहत मेरी
आखिर क्यों यकीन नही अब चाहत पर मेरी ?

मेरी गैर मौजदूगी अब बैचेन उन्हें करती नही
मेरे लिए कलम उनकी कुछ कहती क्यों नही?  

जानता हूँ दूरियां उसने अब मुझसे बना ली है
साथ का वायदा जहाँ, वहां आज दूरी क्यों है ?

मुस्कराहट उनकी अब कुछ अलग सी बात करती है

ये मोहब्बत ‘प्रतिबिंब’ अब अतीत सी लगती क्यों है ? 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणी/प्रतिक्रिया एवम प्रोत्साहन का शुक्रिया

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...