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गुरुवार, 6 अगस्त 2015

~अब...~





इस कोरे पुराने सड़े गले कागज पर कौन लिखना चाहेगा
नए की चाह लिए जब मन, पुराना कौन अपनाना चाहेगा
खोखले हो गए जो एहसास, कोई दूजा न उन्हें भर पायेगा
प्रेम का धागा जब टूट गया, कोई दूजा न उसे जोड़ पायेगा

मन से दूर कर ही दिया जब, कौन फिर हमसे मिलना चाहेगा
नदी के दो किनारे सा जीवन, मिलन की चाह कैसे रख पायेगा
मौसम से बदल रहे भावो में, कौन रंग मोहब्बत का भर पायेगा
बचा नही दर्द सीने में जब, शेर गजल गीत कौन लिख पायेगा

भूली बिसरी बाते याद कर, कौन खुशियाँ से दूर रहना चाहेगा
नीरस हो गए ज़ज्बात जब, कौन उनमे फिर रस भरना चाहेगा
तोड़ मोड़ कर 'प्रतिबिंब',ये कागज का टुकड़ा कल फेका जायेगा
इस पर लिखे मेरे भाव शब्दों को, कौन भला यहाँ पढ़ पायेगा

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

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