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रविवार, 13 सितंबर 2015

ख़्वाब....






कोई ख्वाब कही इंतजार कर रहा है
हकीकत बनने को बस मचल रहा है
क्षितिज पर एक किरण अभी उभरी है
बस मेरी नज़र जाकर अब वही ठहरी है  

कल्पनाओ की परछाई साथ भाग रही है
दिलो की धड़कन उसकी गवाही दे रही है
एहसासों की मध्यम बयार चल तो रही है
लिपट लेना मिलकर हवा भी ये कह रही है

मेरे उभरते ख्वाब की जुम्बिश तुम सी है
जो नज़र झुकाए और नज़र चुराए आती है
कोमलता का शृंगार लिए मुझ से मिलती है
भावुकता से बस दिल बहला चली जाती है

खुले आसामा पर फिर चेहरा उतर आता है
बात ही बात में न जाने कहाँ खो जाता है
एहसासों का ‘प्रतिबिंब’ तब धुंधला जाता है
इन्द्रधनुषी आसमा फिर स्याह हो जाता है

मेला ख्वाबो का अक्सर टूट ही जाता है
मगर हसीन सा खिलौना साथ दे जाता है
खेलता रहता कोई, दिल सौदा कर लेता है
ख्वाबों के शहर में फिर, उम्र जाया करता है  


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