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रविवार, 22 फ़रवरी 2015

मेला, लेखक और फेसबुक





शब्दों का खेल हो चुका, छपने को बेसब्र अब अक्षर है
लगा है पुस्तक मेला, फेसबुक में भी आ गई बहार है
फोटो की लगी होड़ है, तस्वीरो का लगा गर्म बाज़ार है
प्रकाशक और लेखक की जुगलबंदी बिकने को तैयार है

हर एक लेखक अब सोच रहा, कैसे बेचू मैं अपने विचार
लिखने को लिख दिया, नाम का कैसे करू मैं अब प्रचार
पुस्तक मेले से है लगी आस, बिक जाऊं शायद इस बार
विमोचन का मंच लगा कर, ग्राहक का करता है इंतजार

पहले शब्दऔर भावोको प्रकाशक परख खरीदा करते थे
मिल जाए मौका उन्हें छापने का ऐसी दुआ किया करते थे
आज हर कोई बनकर लेखक, प्रकाशक के पीछे है भाग रहे
छप जाए मेरी भी एक पुस्तक’, काश! सौभाग्य यूं बना रहे

हर कोई जतन करे ऐसा की, अब हो जाए अपना भी बेडापार
ख्यातिप्राप्त कमलकार संग खिंच जाए अपनी भी एक तस्वीर
फेसबुकिया मित्रो से मिलकर प्रतिबिंबबढाते अपना जनाधार
मुफ्त पुस्तको का तौहफा लेकर, दिखलाते अपना बेशुमार प्यार

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