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रविवार, 12 अप्रैल 2015

रात बात करती है .....




तू कौन है, जानता नही मन भ्रमित है
तू मौन है, लेकिन मेरा मन विचलित है
तेरे शब्दों के सफर में भाव विस्मित है
अहसासों की तपिश में मन संकुचित है

एक कोमल काया, मायावी जान पड़ती है
एक बेसुध छाया, साथ साथ चल पड़ती है
दौड़ने की चाह, लेकिन साँसे रुक पड़ती है
अहसास ढूँढते छाँव, आह निकल पड़ती है

मेरी तन्हाई, न जाने किस से बात करती है
मेरी तमन्ना, फिर मदहोशी की बात करती है
आस 'प्रतिबिंब',अब खुशियों की बात करती है
कह चुकी शाम बहुत, अब रात बात करती है


-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

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