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शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

तुम ....




रंग रूप का मुझे भान नही, बस जानता हूँ तुम मेरी हो
मेरे कण - कण में है जो रची बसी, वो खुशबू तुम हो
हाँ अपार सौन्दर्य हृदय का लिए, कभी तुम इठलाती हो
पढ़ मेरे नयनो की चंचल भाषा, कभी तुम शरमाती हो

हर्षित है तन - मन, चेहरे पर मुस्कान नित नूतन लिए
प्रेम पाठशाला में हो उपस्थित, नित नया अध्याय लिए
पुलकित करती है तुम्हारी वाणी, अलंकार प्रेम का लिए
रचती हर पल नवगीत, स्वर और सुर समर्पण का लिए

माधुर्य तुम्हारी जीव्हा पर, आँखों में बसता मधुर संसार
अंग - अंग सजते भावो से, प्रेम का होता अद्भुत शृंगार
संयोग है मिलन तेरा मेरा प्रिये, प्रेम बना अब आधार
परिपूर्ण निष्ठा का अहंकार लिए, है समर्पित तेरा संसार  

प्रेम की अब क्या परिभाषा दूं, बस जो कुछ हूँ तेरे लिए
प्रफुल्लित होता मेरा मन, तुझ संग या आभास तेरा लिए
महक उठती तन मन की बगिया प्रिये, एहसास तेरा लिए
तेरे पास बीता हर पल प्रिये, बन जाता है ख़ास मेरे लिए

भानु की किरण संग, कर प्रभु स्मरण मैं करूँ तेरा ध्यान
बनी रहे खुशियाँ तेरी, मिलता रहे जग में मान - सम्मान
मेरी अभिलाषा की आशा तुम, सफलता की हो तुम सोपान
जो चाहो पा जाओ तुम, हर कदम सफलता से हो पहचान

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

रविवार, 13 सितंबर 2015

ख़्वाब....






कोई ख्वाब कही इंतजार कर रहा है
हकीकत बनने को बस मचल रहा है
क्षितिज पर एक किरण अभी उभरी है
बस मेरी नज़र जाकर अब वही ठहरी है  

कल्पनाओ की परछाई साथ भाग रही है
दिलो की धड़कन उसकी गवाही दे रही है
एहसासों की मध्यम बयार चल तो रही है
लिपट लेना मिलकर हवा भी ये कह रही है

मेरे उभरते ख्वाब की जुम्बिश तुम सी है
जो नज़र झुकाए और नज़र चुराए आती है
कोमलता का शृंगार लिए मुझ से मिलती है
भावुकता से बस दिल बहला चली जाती है

खुले आसामा पर फिर चेहरा उतर आता है
बात ही बात में न जाने कहाँ खो जाता है
एहसासों का ‘प्रतिबिंब’ तब धुंधला जाता है
इन्द्रधनुषी आसमा फिर स्याह हो जाता है

मेला ख्वाबो का अक्सर टूट ही जाता है
मगर हसीन सा खिलौना साथ दे जाता है
खेलता रहता कोई, दिल सौदा कर लेता है
ख्वाबों के शहर में फिर, उम्र जाया करता है  


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