मेरी जिन्दगी में तुम
कहो कहाँ कहाँ नही हो?
तन मन में बसती हो
तुम हर रूप में शामिल हो
क्षितिज में उभरती
तुम पहली किरण संग
ढलती शाम से लेकर
तुम अंधेरी रात तक
सुबह की नर्म हवाओ में
दिन की गर्म हवाओ में
रात की सर्द हवाओ में
लिपटी सिमटी भावो में
चाहे हल्की बूंदा बांदी हो
तुम झमझमाती बारिश में हो
तेज बारिश में भीगते हुए
बस तेरे ख्याल में रुझते हुए
तुम अकेलेपन की साथी हो
मेरे ख्यालो के गहराई में हो
मेरी नींद और ख्वाबो में हो
तुम हर गीत संगीत में हो
तुम एहसासों की बेल सी
रूठने मनाने की खेल सी
तुम साँसों की महक सी
मेरे मन की तुम वीणा सी
मेरे कर्म धर्म का स्तम्भ बन
तेरी मुस्कराहट से पुलकित मन
बोलो न मेरी जिन्दगी में
कहाँ कहाँ नही हो तुम ....
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल