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गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

तू.....






हाँ तू शामिल है
मेरी रूह में
भोर से भोर तक
अनगिनत मुलाकाते
महकती है सांस
लिए मिलन की आस
पंखुडियां मोहब्बत की
खुलती जाती है पल पल
एहसास खुसबू बन
महका देते है रोम रोम
छल नही भावो में
पिघल जाता बस तन मन
आलिंगन करती स्नेह लता
सिमट जाती सारी कायनात
कोमलता और समर्पण से
पुरुस्कृत होता कण कण
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

बुधवार, 7 अक्तूबर 2015

... तू मेरी हो गई



नहीं जानता कैसे
तेरी मुस्कराहट
मुझसे जुड़ गई
और तुम मेरी बन गई 

चंद बातो से निकल
भावो में दिखने लगी
दिल में उतर कर
और तन मन में बस गई

अब तेरे बिन यूं तो
पल कोई कटता नही
सिमट कर मेरी बाहों में
न जाने कब तू मेरी बन गई

नीरस थे मौसम सारे
गुम थी जब तुम कहीं
पाया जिस दिन तुम्हे
सावन सी फुहार आ गई

तेरे इंतजार का
तेरे प्यार का
हर लम्हा महसूस किया
मिलते ही मेरी धरोहर बन गई

तेरी खुशी बन
तेरे गम अपना लूं
प्यार करता तुझे हर पल

जिस दिन से तू मेरी हो गई

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

सच या झूठ




देख रहा हूँ
कभी होकर मौन
कभी बेबाक बन
जिंदगी की परतो को
उधड़ते बुनते जाल को
मशीन बना कर्म
छूट रहा कही धर्म
वादा मोहब्बत का
सुर बगावत का
दोस्ती सीमित लेकिन
उदगार ज़माने के
आस एहसास फीके है
अब सीख लिए सलीके है
रुतबा जिम्मेदारी का
मानसिकता फरेब की
'प्रतिबिंब' देख अपना
असमंजस में पड़ गया हूँ
सच या झूठ,

पहचान नही पा रहा हूँ
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