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शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

मेरी तरह का आदमी




मेरी तरह का आदमी 
हर कोने में गरियाता हुआ 
मिल जायेगा, ढूँढना नहीं पड़ता 
कुछ समाज से जुड़ी बातें
खीजता मन 
और पीड़ा का स्वर लिए  
लुभावनी बातें और ज्ञान बांटता 
बस 
छिपा कर बैठा है खुद का मन 

जिन्दगी में कई छेद है
अच्छा लगता है 
इन छेदों से निहारना 
शब्द निकलते हैं 
कलम चलने लगती है 
तब
प्रेम कलम की स्याही थी 
जो शायद अब सूखने लगी
बात बात पर अब
ये पन्ने शिकायत करते हैं
मोहब्बत तलाक मांगती सी 
हर आहट सन्देश की 
धीरे - धीरे मौन हो रही है  

अच्छा है 
जितना जल्दी कोई पहचान ले 
जिसने पहचान लिया 
उसने 
कब का किनारा कर लिया 
तुम अब तक क्यों 
लंगडाते हुए साथ चल रहे 
मेरी खुशफहमी के लिए 
गलतफहमी का शिकार हो गए 
अपनत्व के जाल में फंस  गए
फिर भी मैं ढीठ हूँ....
अपनों को समझने का 
उनसे मोहब्बत का 
बुरा ख्याल मन  में लिए 
चल रहा हूँ, तुम्हारे साए में ही 
अपने 'प्रतिबिम्ब' को छलते हुए 

एक और आकाश 
एक और धरती 
एक और इंसान 
एक और चेतना का भास लिए 
शून्य से शतक की ओर
तपिश और बौछार की जुगलबंदी 
एक नए गीत की ओर ......
चलोगे क्या साथ इसे गुनगुनाने ....

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
०१.०१.२०१६

गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

चलते चलते - ३१.१२-२०१५




१.
पल पल की कीमत
पल पल की कीमत है, कुछ पलो की कीमत हम न लगा पाए
रिश्तों की चाह में और बाट जोहते, अपनों को संभाल न पाए
कोई कहता रहा कोई सुनता गया, दूरियों में ही भाव खो गए
हमने जो भी चाहा 'प्रतिबिम्ब', वो लफ्ज़ बन कर ही रह गए
बीता लम्हा कुछ कह गया, शायद हम अब भी संभल जाए
था दौर जो वो गुजर गया, इस दौर में कुछ अलग सा हो जाए
२.
आज तो याद कर लूँ ....
कल तू बिना कुछ कहे चला जाएगा, मुझे तू याद बहुत आएगा
अच्छा बुरा जैसा भी था, बस अब यूं साथ न तू मेरे रह पाएगा
जानता हूँ तेरे बस में भी कुछ नही, मगर कुछ सिखला जाएगा
भूलना मेरी फितरत नही, बस ज़माने के साथ मैं बदल जाऊंगा
कल तक तुझको लिखता पढ़ता था, अब इतिहास बन जाएगा
समर्पण के थे भाव जहाँ, वहाँ पलट कर देखने न कोई आएगा
प्रेम तुझसे ही था अब तक, अब कोई और जीवन में आ जाएगा
जिंदगी की रीत यही 'प्रतिबिंब', बिछड़ा फिर कौन याद आएगा
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