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गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

चलते चलते - ३१.१२-२०१५




१.
पल पल की कीमत
पल पल की कीमत है, कुछ पलो की कीमत हम न लगा पाए
रिश्तों की चाह में और बाट जोहते, अपनों को संभाल न पाए
कोई कहता रहा कोई सुनता गया, दूरियों में ही भाव खो गए
हमने जो भी चाहा 'प्रतिबिम्ब', वो लफ्ज़ बन कर ही रह गए
बीता लम्हा कुछ कह गया, शायद हम अब भी संभल जाए
था दौर जो वो गुजर गया, इस दौर में कुछ अलग सा हो जाए
२.
आज तो याद कर लूँ ....
कल तू बिना कुछ कहे चला जाएगा, मुझे तू याद बहुत आएगा
अच्छा बुरा जैसा भी था, बस अब यूं साथ न तू मेरे रह पाएगा
जानता हूँ तेरे बस में भी कुछ नही, मगर कुछ सिखला जाएगा
भूलना मेरी फितरत नही, बस ज़माने के साथ मैं बदल जाऊंगा
कल तक तुझको लिखता पढ़ता था, अब इतिहास बन जाएगा
समर्पण के थे भाव जहाँ, वहाँ पलट कर देखने न कोई आएगा
प्रेम तुझसे ही था अब तक, अब कोई और जीवन में आ जाएगा
जिंदगी की रीत यही 'प्रतिबिंब', बिछड़ा फिर कौन याद आएगा

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