पृष्ठ

मंगलवार, 12 जनवरी 2016

बिकने का मौसम आ गया ......



मौसम-मौसम किताबो का मौसम अब आ ही गया
लगा है मेला, हर कोई अब किताबी कीड़ा हो गया
लेखक सब झूमे, बिकने का मौसम आ गया
कुछ का हुआ ऐसा प्रचार, किताबे बिकेगी हाथो हाथ
कुछ बाट जोहते रह जायेंगे, शायद मलते रहेंगे हाथ
लेखक सब झूमे, बिकने का मौसम आ गया
प्रकाशक भी शिकार करते रहे, दिखाते रहे अपना प्यार
नए लेखक खुश होकर, लुटाते रहे उन पर अपना प्यार
लेखक सब झूमे, बिकने का मौसम आ गया
स्वयं घोषित कवि या कहानीकार, गोता लगाने को तैयार
लुटा पैसो को अपने, छपी किताब अब विमोचन को तैयार
लेखक सब झूमे, बिकने का मौसम आ गया
शान है मित्रो को बताना, हमने किताबी मेला देख लिया
कुछ ने फोटो खिंचवाकर, मुफ्त किताबी उपहार पा लिया
लेखक सब झूमे, बिकने का मौसम आ गया
कुछ पढ़कर मित्रो की वाह-वाही कर, समीक्षक बन जायेंगे
मुफ्त पुस्तक की विनती कर, अच्छा-अच्छा लिख जायेंगे
लेखक सब झूमे, बिकने का मौसम आ गया
नहीं जानता इस भीड़ में कितने अच्छे लेखक मिल पायेंगे
उनका लेखन व् कृतियां क्या साहित्य का मान बढ़ा पायेंगे
लेखक सब झूमे, बिकने का मौसम आ गया
लेकिन दिल खुश थोड़ा ‘प्रतिबिम्ब’, प्रेमी के नाते कहता हूँ
मेरी हिन्दी फिर जीने लगी है, फले-फूले बस यही चाहता हूँ  
लेखक सब झूमे, बिकने का मौसम आ गया
           

                         प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल  १२/०१/२०१६ 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणी/प्रतिक्रिया एवम प्रोत्साहन का शुक्रिया

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...