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गुरुवार, 7 जनवरी 2016

नियति ....




मन के धरातल में
उपजा कोई ख्याल
एक चिंगारी बन
धधकने लगता है 
हौसले बुलंद करता है
जीवन को गति और
लक्ष्य को करीब लाता है
दृढ़ता उसका पैमाना बन
हर अवरोध से लड़ती है
संकल्प सीना ताने
हर वार सहता जाता है
शक्ति महाशक्ति प्रतीत होती है
और कदमो में जीत होती है 

कभी मन के अन्दर ही
वो ख्याल मुरझाने लगता है
अगर जीवंत भी रहा तो भी
नियति के क्रूर हाथ
हर प्रहार में वेदना देते है
पहाड़ सा हौसला भी
उसे मैदान में ला पटक देता है
उठकर लड़ने का साहस
जन्म लेता है बार बार
लेकिन अंत में
वीर गति को प्राप्त होता है 

अच्छाई और बुराई
सच और झूठ
धर्म और अधर्म
पाप और पुण्य
के बीच कोई भेद नही है
मानो या न मानो
यह भेद केवल सोच का है
जिसका संचालन
नियति अपने ढंग से करती है
इंसान तो एक मोहरा है
जिसे बस चला जाता है
शतरंज की बिसात पर
हार जीत के फैसले होने तक
जिंदगी और हमारे बीच
एक खेल चलता रहता है
नियति के आख़री पड़ाव तक....

-          प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
०७/०१/२०१

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